नई दिल्ली I सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर समेत 6 अहम मामलों में सुनवाई होगी. इसमें सबसे महत्वपूर्ण है राम जन्मभूमि का मामला. सुनवाई के लिए कोर्ट में तमाम तैयारियां कर ली गई हैं. देशभर की निगाहें आज से शुरू हो रही इस सुनवाई पर लगी रहेंगी. इसके अलावा अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने, ताजमहल को सुरक्षित करने के लिए योगी सरकार के विजन डॉक्यूमेंट, रैन बसेरा, बोफोर्स और आधार की अनिवार्यता जैसे पांच अन्य मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी.
राम मंदिर मामले के लिए हज़ारों पन्नों के दस्तावेजों का सात अलग-अलग भाषाओं और लिपियों में अनुवाद कर लिया गया है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि कोई पक्षकार सुनवाई को टालने के लिए कोई कानूनी फच्चर फँसाता है क्या? सुप्रीम कोर्ट में 5 दिसम्बर को हुई पिछली सुनवाई के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश सरकार ने 53 खंडों में तमाम दस्तावेज़ों के अनुवाद कर लिए हैं. ये दस्तावेज़ संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, पालि, उर्दू सहित सात भाषाओं या लिपियों में हैं.
सूत्रों की मानें तो शिया वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट से मांग करेगा कि मुख्य मामले की सुनवाई से पहले उसकी उसकी याचिका पर सुनवाई की जाए. अपनी याचिका में शिया वक्फ बोर्ड ने निचली अदालत द्वारा 30 मार्च, 1996 को दिए उस फैसले को चुनौती दी है जिसके तहत ज़मीन का मालिकाना हक सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया गया था.
यूपी सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड इस बाबत कुछ हिंदू संगठनों के संपर्क में है. बोर्ड चाहता है कि कोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई के दौरान ये संगठन उसका साथ दें.
शिया वक़्फ़ बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक इस याचिका पर कोर्ट का फैसला उनके हक में आ जाता है तो मुख्य मामले की सुनवाई की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि वो विवादित जमीन पर से अपना मालिकाना हक छोड़ने के लिए तैयार है. वो भी इस शर्त के साथ कि जन्मस्थान पर राम मंदिर बने और मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बने.
दरअसल, बाबरी मस्जिद के स्वामित्व की कानूनी लड़ाई हारने के सात दशक बाद शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. शिया वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर अपनी दावेदारी जताते हुए यह भी कहा कि मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी. सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में बोर्ड ने कहा कि चूंकि इससे संबंधित सभी मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इसलिए उन्होंने निचली अदालत के फैसले को सीधे अदालत में चुनौती दी है.
अपनी याचिका में बोर्ड ने यह कहा कि बाबरी मस्जिद मुगल बादशाह बाबर ने नहीं बल्कि उनके सिपहसालार अब्दुल मीर बाकी ने बनवाई थी. बोर्ड का यह भी कहना है कि मीर बाकी ने अपनी कमाई के धन से इसका निर्माण कराया था. मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था. चूंकि मीर बाकी शिया मुसलमान था, लिहाजा यह शिया वक्फ की संपत्ति है. सैकड़ों साल इस मस्जिद के मुतवल्ली यानी कस्टोडियन भी शिया लोग ही रहे हैं.
याचिका में कहा गया कि निचली अदालत का यह आदेश गलत है जिसमें बाबरी मस्जिद को शिया वक्फ की संपत्ति मानने से इनकार कर दिया गया था.
अब बहस में ये देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट शिया बोर्ड के दावे को कितनी अहमियत देता है. वैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के फैसले को चुनौती इस बिना पर भी दी गई है कि मामला मालिकाना हक का था न कि बंटवारे का. तो ज़मीन बांटने का फैसला क्यों हुआ और कैसे?
कई अहम पक्षकारों से आजतक ने बात की तो पता चला कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मुकदमे में जरूरत पड़ने वाले अहम दस्तावेजों के 53 खंडों का अनुवाद करा लिया है. वो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुके हैं. वैसे भी तमाम दस्तावेजों का तर्जुमा करने की बजाय जरूरी हिस्सों का अनुवाद मुहैया करा दिया गया है. साथ ही कोर्ट के आदेश के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के साथ इस मामले से जुड़े सभी पक्षकारों की मीटिंग भी हो चुकी है. यानी मैदान तैयार है. बस कोर्ट खेल के नियम तय कर देगा और खेल शुरू हो जाएगा.
शिया वक्फ बोर्ड और हिंदू महासभा के वकीलों के मुताबिक सभी पक्षों के AOR की रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल के समक्ष दो बार बैठक हुई. पहली 22 जनवरी को दूसरी 1 फरवरी को. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सभी को वक्त देते हुए कहा था कि सभी पक्ष तैयार होकर आए. सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों के AOR को कहा था कि रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल के साथ बैठक कर जरूरी काग़जी करवाई को पूरा करे. हालांकि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से कहा जा रहा है कि कुछ काग़जी करवाई का पूरा होना अभी बाकी है.
कारसेवकों पर गोली चलाने के मामले की भी सुनवाई
1990 में कार सेवकों पर गोली चलाने का मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. राणा संग्राम सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 1990 में कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश देने को लेकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की है. राणा संग्राम सिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि 6 फ़रवरी 2014 को मैनपुरी जिले में आयोजित एक जनसभा में मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि उनके आदेश पर 1990 में पुलिस ने अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलाई थी. लिहाजा अब उन पर कारसेवकों की हत्या कराने का मुकदमा चलाया जाए.
ताजमहल पर योगी सरकार देगी विजन डॉक्यूमेंट
ताज़महल को सुरक्षित रखने के लिए योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट में विजन डॉक्यूमेंट देगी. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 300-400 सालों तक ताज़महल को सुरक्षित रखने का विजन डॉक्यूमेंट मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कहा कि ऐसा विज़न डॉक्यूमेंट दें जिससे इस ऐतिहासिक इमारत को अगले 100-200 सालों तक सुरक्षित रखा जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कहा कि TTZ जो 6 जिलों में फैला हुआ है उसको संरक्षित करने के लिए विज़न डॉक्यूमेंट भी दे. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि आपके इंतजाम ताजमहल जैसी अहम इमारत को 15, 20 या पचास साल के लिए सुरक्षित नहीं करना बल्कि 300-400 साल के लिए सुरक्षित करना है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एडहॉक प्लान से काम नहीं चलेगा. कोर्ट ने कहा कि जो पौधे आप लगाते हैं उसमें से 75 फ़ीसदी मर जाते है. ऐसे में पेड़ लगाने का क्या फायदा.
रैन बसेरा मामले में भी सुनवाई
रैन बसेरा मामले में सुप्रीम कोर्ट आज आगे की सुनवाई करेगा. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को जमकर फटकार लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदेश की 2011 की जनगणना के मुताबिक 1 लाख 22 हज़ार बेघर लोग हैं, जबकि अब यूपी सरकार कह रही है कि सिर्फ 22 हज़ार लोग ही बेघर हैं. इसका मतलब तो यही है कि आप इस मद में मिले बाकी पैसे वापस कर दे. उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि ये तुरंत का सर्वे है इसको आप अनदेखा करे. जिस पर कोर्ट ने कहा कि इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. कोर्ट का समय बर्बाद करने के बाद सरकार पूरी तैयारी से आये. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य स्तर पर तीन सदस्यीय कमिटी बने, जिसमें एक सिविल सोसायटी के हो, दूसरा रिटायर्ड सचिव स्तर का अधिकारी और तीसरा प्रधान सचिव शहरी विकास विभाग का हो.
आधार कार्ड की अनिवार्यता पर भी सुनवाई
आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी. बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा एक बार बोतल से जिन्न निकलता है तो वापस नही आ सकता. आज के तकनीकी दौर में ये कहना एक दम सही होगा कि एक बार व्यतिगत सूचना लोगों के बीच आ जाती है तो उसके घातक परिणाम हो सकते है.
बोफोर्स मामला
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ बोफोर्स मामले की भी सुनवाई करेगी. वकील अजय अग्रवाल की ओर से दायर इस याचिका के बाद सीबीआई ने तय किया कि वो 12 साल पुराने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. दिल्ली हाईकोर्ट के इस बारे में आये फैसले में इसी सीबीआई के तमाम लचर दलीलों और सबूतों को कोर्ट ने नाकाफी मानते हुए हिंदुजा बंधुओं और क्वात्रोकी समेत सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था. सीबीआई ने चुनौती याचिका तो दायर कर दी लेकिन इसी बाबत अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार को सलाह दी थी कि अलग से याचिका दायर करने के बजाय अग्रवाल की ही याचिका में सीबीआई अपने पक्ष की दलीलों और सबूतों का हलफनामा पेश कर दे. अब देखें कि अटार्नी जनरल की राय की अनदेखी करने के बाद सीबीआई की शान बढ़ती है या फजीहत.
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