उत्तराखंड के पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए बेहद ज़रूरी शर्त अच्छी क्वालिटी की शिक्षा गांवों तक पूरा कराने का सपना बस पूरा होने को है लेकिन राज्य का शिक्षा विभाग ही नहीं चाहता कि ऐसा हो. तभी निजी क्षेत्र के एक बेहद आकर्षक और पहाड़ों में शिक्षा की स्थिति को आमूलचूल परिवर्तन करने में सक्षम प्रस्ताव पर यह विभाग कुंडली मारकर बैठा है.
पलायन रोकने के तीन आधार
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए तीन अनिवार्य शर्तें पूरा किए जाने की ज़रूरत है. पहला है रोज़गार, फिर शिक्षा और स्वास्थ्य. रोज़गार के लिए आदमी दिल्ली-मुंबई जा रहा है तो शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए परिवार देहरादून, हल्द्वानी उतर रहा है. राज्य सरकार के आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में राज्य के अंदर 35 फ़ीसदी लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं और 35 फ़ीसदी राज्य के बाहर. 29 फ़ीसदी लोग कस्बों की ओर पलायन करते हैं और एक फ़ीसदी विदेश जाते हैं
यह बात आम आदमी और विशेषज्ञ एक ज़ुबान से कह रहे हैं कि अगर यह तीनों चीज़ें गांव में ही मिल जाएं कस्बों, राज्य के शहरी क्षेत्रों और शहरों की ओर पहाड़ों से मजबूरी में होने वाला पलायन ख़त्म हो सकता है.
सतपुली में हंस के बनाए अस्पताल के साथ पहाड़ों में उच्च स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं की शुरुआत हो गई है. राज्य की जैसी माली हालत है उसमें निजी क्षेत्र या धर्मार्थ संस्थाओं (एनजीओ) के साथ इस तरह के सहयोग से ही स्वास्थ्य और शिक्षा की बेहद खस्ता हालत को सुधारा जा सकता है. स्वास्थ्य क्षेत्र में हंस फ़ाउंडेशन के रूप में राज्य को एक बड़ा सहयोगी मिल गया है और अब सबके लिए स्वास्थ्य का सपना साकार होता दिख रहा है.
रोज़गार, स्वरोज़गार के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है जिनमें उसे केंद्र का और निजी क्षेत्र का भी सहयोग मिल रहा है.
शिक्षा मिलेगी, पलायन रुकेगा
लेकिन पलायन रोकने के लिए तीसरी सबसे बड़ी शर्त, अच्छी शिक्षा, को पूरा कैसे किया जाएगा. राज्य में सरकारी स्कूलों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है. राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार पलायन की सबसे बड़ी वजह शिक्षा है. कुल पलायन का सबसे अधिक 31 प्रतिशत शिक्षा की वजह से होता है
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